মহাদেবী বর্মা: সংশোধিত সংস্করণের মধ্যে পার্থক্য

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১৪ নং লাইন:
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'''মহাদেবী বর্মা''' ([[মার্চ ২৬]], [[১৯০৭]] — [[সেপ্টেম্বর ১১]], [[১৯৮৭]]) একজন [[হিন্দি]]ভাষী কবি ছিলেন।<!--
 
'''महादेवी वर्मा''' ([[26 मार्च]], [[1907]] — [[11 सितंबर]], [[1987]]) [[हिन्दी]] की सर्वाधिक प्रतिभावान कवयित्रियों में से हैं। वे [[हिन्दी साहित्य]] में [[छायावादी युग]] के चार प्रमुख स्तंभों{{Ref_label|स्तंभ|क|none}} में से एक मानी जाती हैं।<ref>{{harvnb|वर्मा|1985|pp=38-40}}</ref> आधुनिक हिन्दी की सबसे सशक्त कवयित्रियों में से एक होने के कारण उन्हें ''आधुनिक [[मीरा बाई|मीरा]]'' के नाम से भी जाना जाता है।<ref>{{cite web |url= http://literaryindia.com/Literature/Indian-Authors/mahadevi-verma.html|title= Mahadevi Verma: Modern Meera|accessmonthday=[[3 मार्च]]|accessyear=[[2007]]|format= एचटीएमएल|work= लिटररी इंडिया|language=अंग्रेज़ी}}</ref> कवि [[निराला]] ने उन्हें “हिन्दी के विशाल मन्दिर की सरस्वती” भी कहा है।{{Ref_label|निराला की पंक्तियाँ|ख|none}} महादेवी ने स्वतंत्रता के पहले का भारत भी देखा और उसके बाद का भी। वे उन कवियों में से एक हैं जिन्होंने व्यापक समाज में काम करते हुए भारत के भीतर विद्यमान हाहाकार, रुदन को देखा, परखा और करुण होकर अन्धकार को दूर करने वाली दृष्टि देने की कोशिश की।<ref>{{cite web |url= http://www.tadbhav.com/Mahadevi%20ka.htm#mahadevi |title= महादेवी का सर्जन : प्रतिरोध और करुणा |accessmonthday=[[28 अप्रैल]]|accessyear=[[2007]]|format= एचटीएमएल|work= तद्भव|language=हिन्दी}}</ref> न केवल उनका काव्य बल्कि उनके सामाजसुधार के कार्य और महिलाओं के प्रति चेतना भावना भी इस दृष्टि से प्रभावित रहे। उन्होंने मन की पीड़ा को इतने स्नेह और शृंगार से सजाया कि ''[[दीपशिखा]]'' में वह जन जन की पीड़ा के रूप में स्थापित हुई और उसने केवल पाठकों को ही नहीं समीक्षकों को भी गहराई तक प्रभावित किया।{{Ref_label|सृजनगाथा|ग|none}}
 
उन्होंने [[खड़ी बोली]] हिन्दी की कविता में उस कोमल शब्दावली का विकास किया जो अभी तक केवल [[बृजभाषा]] में ही संभव मानी जाती थी। इसके लिए उन्होंने अपने समय के अनुकूल [[संस्कृत]] और [[बांग्ला]] के कोमल शब्दों को चुनकर हिन्दी का जामा पहनाया। संगीत की जानकार होने के कारण उनके गीतों का नाद-सौंदर्य और पैनी उक्तियों की व्यंजना शैली अन्यत्र दुर्लभ है। उन्होंने अध्यापन से अपने कार्यजीवन की शुरूआत की और अंतिम समय तक वे [[प्रयाग महिला विद्यापीठ]] की प्रधानाचार्या बनी रहीं। उनका बाल-विवाह हुआ परंतु उन्होंने अविवाहित की भांति जीवन-यापन किया। प्रतिभावान कवयित्री और गद्य लेखिका महादेवी वर्मा साहित्य और संगीत में निपुण होने के साथ साथ<ref>{{cite web |url= http://www.taptilok.com/2006/01-03-2006/sahitya_Hindi_sahitya.html|title= गद्यकार महादेवी वर्मा|accessmonthday=[[26 मार्च]]|accessyear=[[2007]] |format= एचटीएमएल|work= ताप्तीलोक}}</ref> कुशल चित्रकार और सृजनात्मक अनुवादक भी थीं। उन्हें हिन्दी साहित्य के सभी महत्त्वपूर्ण पुरस्कार प्राप्त करने का गौरव प्राप्त है। भारत के साहित्य आकाश में महादेवी वर्मा का नाम ध्रुव तारे की भांति प्रकाशमान है। गत शताब्दी की सर्वाधिक लोकप्रिय महिला साहित्यकार के रूप में वे जीवन भर पूजनीय बनी रहीं।<ref>{{cite book |last=वशिष्ठ |first= आर.के.|title= उत्तर प्रदेश (मासिक पत्रिका) अंक-7|year= 2002 |publisher= सूचना एवं जनसंपर्क विभाग, उ.प्र.|location= लखनऊ, भारत|id= |page= 24|editor: विजय राय|accessday= 27|accessmonth=अप्रैल|accessyear=2007}}</ref>